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मांगलिक दोष(manglik dosh) के नाम के ज्योतिषीय योग से हम सभी भली भाँति परिचित है, हमारे समाज में इस दोष को लेकर कुछ सच्चाई और कुछ भ्रान्तियों का समावेश है,
अधिकतर लोगों को ये लगता है की जिस भी जातक या जातिका की जन्म पत्रिका में मांगलिक दोष होता है यदि उनका विवाह बिना मांगलिक दोष वाले जातक या जातिका से होता है तो उनके जीवन साथी का प्राणान्त हो जाता है लेकिन यह पूर्ण सत्य नही है ज्योतिषीय गणना के अनुसार प्रतिदिन लगभग 40% से 45% लोग मांगलिक होते है तो क्या इतनी बड़ी संख्या में लोग इस त्रासदी का सामना करते है निश्चय ही नहीं तो कुछ और भी तथ्य है इस दोष के पीछे वो सभी तथ्य क्या है आगे आपके सामने प्रस्तुत है –
ज्योतिष में मंगल का प्रभाव –
ज्योतिष के अनुसार मंगल शक्ति, पराक्रम, नेतृत्व क्षमता व साहस का प्रतीक है; नौ ग्रहों में मंगल को सेनापति की संज्ञा दी गई है, मंगल को राशियों में मेष व वृश्चिक तथा नक्षत्रों में मृगशिरा, चित्रा व धनिष्ठा नक्षत्र का स्वामित्व दिया गया है, यह मंगल उग्र, गर्म, तमोगुणी और रूखी प्रकृति का ग्रह है, मंगल के प्रभाव से स्त्री या पुरुष के स्वभाव में उग्रता आती है और व्यक्ति शीघ्र ही आवेश में आ जाता है।
मांगलिक दोष क्या है (what is manglik dosh)-
जब किसी भी जातक अथवा जातिका की जन्मपत्रिका के लग्न कुण्डली में मंगल लग्न (प्रथम भाव ), चतुर्थ भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव, द्वादश भाव में, मंगल स्थित होता है तो ऐसे जातक को मंगला एवं जातिका को मंगली कहते है ।
मांगलिक दोष (manglik dosh) देखते समय केवल लग्न कुण्डली में ही मंगल की स्थिति को देखकर निर्णय नहीं करना चाहिए अपितु चन्द्र कुण्डली, नवमांश कुण्डली व शुक्र कुण्डली के सापेक्ष भी मंगल की स्थिति को अवश्य देखना चाहिए, यदि कोई चन्द्र कुण्डली में भी मंगली हो तो उसे चुनरी मंगली कहा जाता है, नवांश कुण्डली तो हम सभी जानते है ये ज्योतिष के सभी साफ्टवेयर में मिल जाता है और यदि आप इसे बनाना चाहें तो इसे आसानी से बनाया जा सकता है वृहत पाराशर होरा शास्त्र में इसको बनाने के लिये एक सारणी दी गई है ,
अब प्रश्न उठता है की शुक्र कुण्डली क्या है? शुक्र कुण्डली वह होती है जिसमें लग्न कुण्डली में शुक्र जिस भी राशि में स्थित हो उस राशि को लग्न मानकर बाकी सभी ग्रहों को लग्न कुण्डली के जिस-जिस राशि में स्थित हो उन सभी को शुक्र कुण्डली के उस-उस राशि में अंकित करने के बाद जो भी कुण्डली बनेगी उसे शुक्र कुण्डली कहेंगे,
यदि कोई लग्न कुण्डली के साथ-साथ इन तीनों कुण्डलीयों चन्द्र कुण्डली, नवमांश कुण्डली व शुक्र कुण्डली में भी कोई मंगली या मंगला होता है तो उसका प्रभाव काफी तीव्र हो सकता है साथ ही साथ मंगल और विवाह के कारक सप्तम भाव पर अन्य शुभ या अशुभ ग्रहों के प्रभाव से परिणाम परिवर्तित हो जायेगा ।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल की 3 दृष्टियाँ होती है पहली दृष्टि अपने स्थान पर जहाँ वह स्थित होता है वहां से चतुर्थ भाव पर, दूसरी दृष्टि अपने से सामने सप्तम भाव पर एवं तीसरी दृष्टि अपने से अष्टम भाव पर पड़ती है, इन्ही दृष्टियों के अनुसार जब मंगल की स्थिति या दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ती है तब मांगलिक दोष का प्रभाव दिखता है, अपवाद स्वरूप केवल अष्टम भाव में स्थित मंगल सप्तम भाव पर दृष्टि नहीं डालेगा ।
ज्योतिष में सप्तम भाव से बहुत सी बातों को देखते है परन्तु जब हम यहाँ मांगलिक दोष (manglik dosh) की चर्चा कर रहे हैं तो इस सन्दर्भ में सप्तम भाव से वैवाहिक जीवन, जीवन साथी का स्वभाव एवं विवाह का विचार किया जाता हैं, इन्ही सभी कारको पर मंगल की दृष्टि या स्थिति के कारण इन पर जो भी मंगल का क्रूर प्रभाव पड़ता है उससे स्थितियां विपरीत हो जाती है ।
कहते है की मंगल गैर मांगलिक जीवन साथी के प्राणों का हरण कर लेता है क्या ये पूर्णतया सही है बिल्कुल नहीं क्योंकि जब तक किसी की भी मांगलिक जातक(पुरुष) की जन्मपत्रिका में विधुर योग अथवा जातिका(स्त्री) की जन्मपत्रिका में प्रबल वैधव्य योग न हो और इसके साथ ही उसके जीवन साथी की कुण्डली में अल्पायु योग न हो तो जीवन साथी के जीवन का अंत हो ही नही सकता है,
तब इस स्थिति में दम्पत्तियों में जब कोई एक ही मांगलिक दोष (manglik dosh) से ग्रसित हो और वैधव्य या विधुर योग न हो तो आपस में लड़ाई-झगड़े व वैवाहिक पार्थक्य की स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं और देखने में यही आता है की पति-पत्नी के मध्य अलगाव का कारण भी यही होता है ।
एक प्रचलित मान्यता यह भी है की 28 वर्ष की उम्र के पश्चात मांगलिक दोष (manglik dosh) का प्रभाव समाप्त हो जाता है जो की व्यावहारिक दृष्टिकोण से और अनेकों जातक व जातिकाओं के जीवन में इसके प्रभाव को देखते हुए यह प्रतीत होता है की जातक या जातिका के उम्र की सीमा मांगलिक दोष के प्रभाव को परिवर्तित नहीं कर सकती है ।
अष्टम भाव का मंगल स्त्री और पुरुष दोनों के लिये भिन्न-भिन्न प्रभाव देता है जहाँ स्त्री की कुण्डली में यह प्रबल मांगलिक कहलाता हैं वहीं पर पुरुष की कुण्डली में यह मध्यम मांगलिक कहलाता है ।
दक्षिण भारत के कुछ विद्वान द्वितीय भाव के मंगल को मांगलिक दोष (manglik dosh) की श्रेणी में रखते हैं परन्तु हम लोगों ने इस द्वितीय भाव के मंगल का कोई विशेष प्रभाव देखने को नहीं मिलता है अतः इसे मांगलिक दोष की श्रेणी में नहीं रखा जाता है, दक्षिण भारत में मांगलिक दोष को कुज दोष कहा जाता है क्योंकि मंगल का एक नाम कुज भी है ।
मांगलिक दोष (manglik dosh) में मंगल की स्थितियों का प्रभाव –
मांगलिक दोष (manglik dosh) में पाँच भावों में मंगल की स्थिति का प्रभाव वैवाहिक जीवन पर क्या पड़ेगा इन सभी को देखते है, ज्योतिष में हर एक ग्रह एवं भाव के अनगिनत कारक होते है, इसी प्रकार मंगल का प्रभाव जीवन के कई क्षेत्रों में भाव के स्वामित्व व विभिन्न भावों में स्थिति के अनुसार होगा परन्तु यहाँ पर केवल हम उन्ही कारकों की चर्चा करेंगे जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव वैवाहिक जीवन पर पड़ेगा,
प्रथम भाव में मंगल –
प्रथम भाव से जातक के व्यक्तित्व, स्वास्थ्य, शारीरिक सरंचना एवं चरित्र का विचार किया जाता है, जब मंगल लग्न में स्थित होकर मांगलिक दोष का निर्माण कर रहा हो तब वह व्यक्ति के व्यवहार को तीक्ष्ण बना देता है एवं जातक या जातिका उग्र स्वभाव के हो जाते है और कभी-कभी तो उनका जीवनसाथी भी आक्रामक व्यवहार प्रदर्शित करता है, यहाँ से मंगल की दृष्टि चतुर्थ, सप्तम और अष्टम भाव पर होगी ।
चतुर्थ भाव जो की पारिवारिक सुख शान्ति का कारक है यहाँ पर मंगल पारिवारिक सुख को लेकर मन में अशान्ति उत्पन्न करेगा, सप्तम भाव वैवाहिक जीवन का कारक है यहाँ पर मंगल की दृष्टि के प्रभाव से आपस में किसी हठ के कारण मनमुटाव होता है जो की आपसी विवाद का कारण बनता है, दुर्घटना व अनिष्ट के कारक अष्टम भाव पर मंगल का प्रभाव से दम्पत्तियों के मध्य अलगाव की सम्भावना रहती है, कन्याओं की कुण्डली में अष्टम भाव उनके मांगल्य का भी कारक होता है यहाँ पर मंगल के प्रभाव से उनके मांगल्य सुख में कमी आती है ।
चतुर्थ भाव में मंगल –
चतुर्थ भाव को सुख स्थान माना जाता है इस भाव से पारिवारिक सुख, मन की प्रसन्नता एवं सभी भौतिक सुख सुविधायें विशेषत: वाहन व भूमि-भवन का विचार किया जाता है,जब मंगल चतुर्थ भाव में स्थित होकर मांगलिक दोष का निर्माण कर रहा हो तब चतुर्थ भाव जो की पारिवारिक सुख शान्ति के लिये देखा जाता है उस पर मंगल के प्रभाव के कारण पारिवारिक सुख शान्ति छिन्न-भिन्न हो जाती है, यहाँ से मंगल की दृष्टि सप्तम, दशम व एकादश भाव पर होगी ।
यहाँ से मंगल की दृष्टि वैवाहिक जीवन के कारक सप्तम भाव पर पड़ती जिस कारण दम्पत्तियों के मध्य अनायास विवाद या टकराव होता रहता है, चतुर्थ भाव से मंगल की दृष्टि दशम भाव पर पड़ती है जो की सप्तम से चतुर्थ होने के कारण जीवनसाथी की सुख शान्ति को प्रभावित करेगा और मंगल की अंतिम दृष्टि एकादश भाव पर होगी जो की सप्तम भाव से पञ्चम होने के कारण जीवन साथी की प्रेम भावनाओं को भी प्रभावित करेगा ।
सप्तम भाव में मंगल –
सप्तम भाव यही विवाह का मुख्य भाव है इस भाव से वैवाहिक सुख, जीवन साथी के साथ सामंजस्यता एवं उसके आचार-विचार को देखते हैं, इस स्थान का मंगल दोष सर्वाधिक प्रभावी होता है, यहाँ से मंगल चतुर्थ भाव पर पाप अर्गला देता है जिससे घर की सुख शान्ति छिन्न-भिन्न हो जाती है ।
सातवें स्थान में स्थित मंगल जातक को अपने जीवनसाथी प्रति कठोर बना देता है जिस कारण वैवाहिक जीवन नीरस हो जाता है, कभी कभी यहाँ का मंगल जीवनसाथी को शारीरिक कष्ट दे देता है, सप्तम भाव का मंगल पति-पत्नी के समक्ष कुछ ऐसी परिस्थिति या विवाद उत्पन्न कर देता ही जिसके प्रभाव से दोनों को अलग-अलग रहना पड़ जाता है, यहाँ से मंगल की दृष्टि दशम, लग्न व द्वितीय भाव पर पड़ेगी ।
यहाँ से मंगल की चतुर्थ दृष्टि दशम भाव पर पड़ेगी जो की सप्तम से चतुर्थ होने के कारण जीवनसाथी की सुख शान्ति को प्रभावित करेगा, इसकी सप्तम दृष्टि लग्न पर होने से जातक के स्वभाव में उग्रता रहेगी, मंगल की अष्टम दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ेगी जो की सप्तम से अष्टम होने के कारण जीवनसाथी की आयु, दुर्घटना एवं उनके दीर्घकालीन रोगों का कारक होने से इन सभी बातों पर मंगल का नकारात्मक प्रभाव दिखेगा ।
अष्टम भाव में मंगल –
जन्मपत्रिका के अष्टम भाव से विघ्न-बाधा, आयु, दुर्घटना व दीर्घकालिक रोग का विचार किया जाता है एवं स्त्रियों की कुण्डली में अष्टम भाव का बहुत अधिक महत्व होता है यह स्त्रियों के मांगल्य सुख का भाव होता है और यहाँ मंगल स्थित होकर स्त्री के मांगल्य सुख को प्रभावित करता है । काल पुरुष की कुण्डली में इस अष्टम भाव का स्वामी मंगल होता है, यहाँ से मंगल वैवाहिक जीवन के भाव सप्तम भाव को पाप कर्तरी प्रभाव देगा जिस कारण जातक या जातिका के जीवनसाथी से सामंजस्य बना पाना थोड़ा मुश्किल होता है और जातक या जातिका का जीवनसाथी अपना पूरा भेद नहीं बताते हैं, यहाँ से मंगल की दृष्टि एकादश, द्वितीय व तृतीय भाव पर पड़ेगी ।
अष्टम भाव में स्थित मंगल की चतुर्थ दृष्टि एकादश भाव पर पड़ेगी जो की विवाह के भाव से पञ्चम होने के कारण जीवन साथी के प्रेम भावनाओं पर नकारात्मक प्रभाव देगा, इसकी सप्तम दृष्टि द्वितीय भाव पर होने से जीवनसाथी का स्वास्थ्य व आयु प्रभावित होती है, मंगल की अष्टम दृष्टि तृतीय भाव पर होने से किसी रिश्तेदार के कारण दम्पत्तियों में विवाद हो सकता है ।
द्वादश भाव में मंगल –
द्वादश भाव से हानि, बन्धन, शैय्या सुख और निद्रा का विचार किया जाता है, यदा-कदा इस भाव में स्थित मंगल शारीरिक सुख में थोड़ी कमी कर देता है और पति-पत्नी के मध्य अनायास ही विवाद होने लगता है, यहाँ पर स्थित मंगल के प्रभाव से दम्पत्तियों में किसी भ्रम या बेवजह के शक के कारण आपस में अविश्वास की स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती है, यहाँ से मंगल की दृष्टि तृतीय, षष्ठम व सप्तम भाव पर होगी ।
द्वादश भाव में स्थित मंगल की चतुर्थ दृष्टि तृतीय भाव पर पड़ेगी इस दृष्टि के प्रभाव से जीवनसाथी के दुस्साहस व क्रोध में वृद्धि होती है, इसकी सप्तम दृष्टि षष्ठम भाव पर होगी जो की सप्तम से द्वादश होने से जीवनसाथी के लिये हानिकारक साबित होता है और कभी-कभी जीवन साथी के स्वास्थ्य के ऊपर भी नकारात्मक प्रभाव देता है, यहाँ से मंगल की अष्टम दृष्टि सप्तम भाव पर होने से दम्पत्तियों के मध्य सम्बन्धों में कटुता आने लगती है और अलगाव की स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती है ।
मांगलिक दोष (manglik dosh ) कब दुष्प्रभाव देता है –
- दशवर्गों में मंगल जितने अधिक वर्गों में मंगल दोष होता है उतना ही अधिक दुष्प्रभाव बढ़ता जाता है ।
- षोडशवर्गों में भी मंगल से जितने अधिक वर्गों मे मंगल दोष होगा उसी अनुपात मे उसका दुष्प्रभाव बढ़ता जायेगा ।
- कुण्डली में भौमपंचक दोष होने पर मांगलिक दोष (manglik dosh) अधिक प्रभावी हो जाता है, अब प्रश्न यह उठता है की यह भौमपंचक दोष क्या होता है, जब जन्मपत्रिका में मंगल के साथ सूर्य, शनि, राहु एवं केतु में से किसी एक या एक से अधिक ग्रहों की स्थिति लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम या द्वादश भाव में होती है तो यह भौमपंचक दोष कहलाता है, यह भौमपंचक दोष मांगलिक दोष के दुष्प्रभावों को बढ़ा देता है,जीतने अधिक ग्रहों का प्रभाव इस योग में सम्मिलित होता है उसका उतना ही दुष्प्रभाव बढ़ता ही जाता है ।
- जब कुण्डली में मंगल त्रिक भावों(6,8,12) का स्वामी होता है तब मांगलिक दोष (manglik dosh) का दुष्प्रभाव और भी बढ़ जाता है ।
- छठवाँ भाव रोग,शत्रुता,अपयश,दुष्कर्म एवं दुर्घटना का कारक होता है ।
- आठवां भाव अनिष्ट,अपमान, दीर्घकालिक रोग एवं मृत्यु का कारक होता है ।
- बारहवां भाव बन्धन,व्यसन, मानसिक कष्ट, हानि व शैय्या सुख का कारक होता है ।
जब मंगल इनमें से किसी भी भाव का स्वामी होता है तो उस भाव से सम्बन्धित कारकों को बढ़ा देता है।
- मंगल जिस भाव में स्थित हो वहाँ पर उसे अष्टकवर्ग में यदि 4 से कम बिंदु मिले हो तो यह मंगल अधिक कष्ट देता है ।
- मांगलिक दोष (manglik dosh) में यदि मंगल नीच का हो जाए तो भी यह कष्टकारी होता है ।
- इन सभी तथ्यों के साथ ही यदि आप जैमिनी ज्योतिष के अनुसार चर कारकों में से दाराकारक की कुण्डली में स्थिति पर भी विचार करेंगे तो और भी सटीक परिणाम आपको मिल सकता है, यदि मांगलिक दोष (manglik dosh) के साथ ही दाराकारक यदि उच्च का या स्वग्रही हो और शुभ भावों में हो तो दाराकारक दाम्पत्य जीवन के लिए शुभ परिणाम अवश्य ही देता है, और यदि दाराकारक अशुभ भावों या अशुभ प्रभाव में हो तो यह वैवाहिक जीवन के लिये और भी कष्टकारी हो जाता है ।
मांगलिक दोष (manglik dosh ) के अपवाद –
अजे लग्ने व्यये चापे पाताले वृश्चिके स्थिते ।
वृषे जाये घटे रन्ध्रे भौमदोषो न विद्यते ॥
अर्थात मेष राशि का मंगल लग्न में, धनु राशि का मंगल द्वादश भाव, वृश्चिक राशि का मंगल चतुर्थ भाव में, वृष राशि का मंगल सप्तम भाव में, कुम्भ राशि का मंगल अष्टम भाव में हो तो मांगलिक दोष (manglik dosh) नहीं माना जाता है ।
मांगलिक दोष (manglik dosh ) के परिहार –
जन्मपत्रिका में ग्रहों की कुछ ऐसी भी स्थितियां होती है जिनके प्रभाव से मांगलिक दोष (manglik dosh) का परिहार हो जाता है जिसका विवरण निम्न है, इनमे से किसी की जन्मपत्रिका में एक योग मिलने पर अल्प परिहार एवं एक से अधिक योग होने पर मांगलिक दोष का लगभग पूर्ण परिहार हो जाता है –
- लग्न में बृहस्पति हो तो मांगलिक दोष (manglik dosh) का परिहार हो जाता है क्योंकि यहाँ से बृहस्पति की शुभ दृष्टि सप्तम भाव पर जो की वैवाहिक जीवन का कारक है उस पर होगी, यदि बृहस्पति त्रिक का स्वामी न हो तो यहाँ पर बृहस्पति अपना मंगलमय प्रभाव वैवाहिक जीवन पर अवश्य ही देगा और यदि त्रिक भाव का स्वामी हुआ तो भाव स्वामित्व के प्रभाव से थोड़ा बहुत कष्ट दे सकता है परन्तु बृहस्पति में सर्वाधिक शुभता होने के कारण अंततः सुखमय वैवाहिक जीवन का वरदान मिलता है ।
- मांगलिक जातक या जातिका का जिससे भी विवाह होना है उसके 1,4,7,8,12 भाव में शनि स्थित हो तो यहाँ पर अल्प परिहार हो जाता है ।
- यदि मंगल उच्च का यानि मकर राशि का हो तो मांगलिक दोष (manglik dosh) का परिहार हो जाता है ।
- यदि मंगल स्वराशि का हो यानि मेष या वृश्चिक राशि का हो तो मांगलिक दोष (manglik dosh) का प्रभाव कम हो जाता है ।
- यदि मंगल नवमांश में उच्च या स्वराशि का हो तो भी मांगलिक दोष (manglik dosh) का अल्प परिहार हो जाता है ।
- यदि मंगल मृगशिरा, चित्रा या धनिष्ठा नक्षत्र का हो तो मांगलिक दोष (manglik dosh) का अल्प परिहार हो जाता है ।
मांगलिक दोष के उपाय (manglik dosh remedies) –
यदि सप्तम भाव/सप्तमेश या दोनों पर पार्थक्यकारी ग्रहों शनि राहु आदि का भी प्रभाव हो तो जहाँ तक हो सके गैर मांगलिक जीवनसाथी का चुनाव करने से बचना चाहिए क्योंकि यह देखा गया है की कई बार उपायों को करने के पश्चात् भी वैवाहिक जीवन में विघटनकारी स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती है,
इन सभी स्थितियों का सर्वोत्तम उपाय यह है की समुचित मेलापक के पश्चात् ही विवाह करना चाहिये, अब प्रश्न यह उठता है की मांगलिक दोष का उपाय (manglik dosha remedies) कब करना चाहिये यदि बृहस्पति आदि शुभ ग्रहों की दृष्टि सप्तम भाव, मंगल और सप्तमेश पर हो एवं किसी भी क्रूर ग्रह जैसे शनि राहु केतु आदि का प्रभाव इन सभी पर न हो तो विधिवत उपाय कराकर विवाह करना सुखकारी होगा, आइये अब देखते हैं मांगलिक दोष की शान्ति के लिये कुछ महत्वपूर्ण प्रभावकारी उपाय-
- मंगल दोष की शान्ति का संकल्प लेकर महामृत्युंजय मन्त्र का जाप स्वयं करें या किसी कर्मकाण्ड करने वाले आचार्य से करायें ।
- दो मुखी, तीन मुखी व पाँच मुखी रुद्राक्ष को लाल धागे में पिरोकर हाथ या गले में धारण करें ।
- मंगल ग्रह की शान्ति का उपाय करें ।
- भगवान नृसिंह की आराधना करें ।
- मंगलवार के दिन यथा शक्ति लाल मसूर की दाल को लाल कागज के लिफाफे में या लाल कपड़े में बांधकर उसका दान करें, यह दान अंगारक चतुर्थी के दिन अवश्य ही करना चाहिये अंगारक चतुर्थी वह होती है जिसमें मंगलवार को शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि हो ।
- किसी कन्या की कुण्डली में मांगलिक दोष होने पर विवाह से पूर्व पूर्ण विधि विधान से घट विवाह, अश्वथ विवाह या विष्णु विवाह कराना कन्या के दाम्पत्य जीवन के लिये मंगलकारी होता है ।
- मंगल के वैदिक मन्त्र का 24 हजार का जाप करें –
ऊँ अग्निमूर्द्धादिव: ककुत्पति पृथिव्याअयम्। अपा रेता सिजिन्वति ॥
ॐ अग्निर्मूर्द्धा दिवः ककुत्पति पृथिव्याऽअयम् । अपां रेतां सि जिन्वति । भौमाय नमः ।
- मंगल के तांत्रोक्त मंत्र का 40 हजार का जाप करें –
ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः ॥
- मंगल गायत्री का 24 हजार जाप करें –
ॐ अङ्गारकाय विद्महे शक्ति हस्ताय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात् ॥
- मंगल शतअष्टोत्तर नामावली का पाठ करें ।
- मंगल कवच का पाठ करें ।
- मंगला गौरी का व्रत करें ।
- मंगल चण्डिका स्तोत्र का पाठ करें ।
निष्कर्ष –
यदि इस मंगल दोष का परिहार हो जाये या इसका प्रभाव अत्यंत अल्प हो तो उपरोक्त वर्णित उपाय करा कर विवाह को सम्पन्न करा सकते हैं परन्तु मांगलिक जातकों या जातिकाओं का विवाह मांगलिक से ही कराना श्रेयस्कर होता है इसमें दम्पत्तियों के मध्य मांगलिक दोष (manglik dosh) में सामंजस्यता होने के कारण इस दोष से उत्पन्न होने वालें किसी भी प्रकार के विसंगतियों का सामना नहीं करना पड़ता है जिससे ऐसे दम्पत्तियों का वैवाहिक जीवन मधुर रहता है और दाम्पत्य सुख में वृद्धि होती है
यदि आप अपनी कुण्डली में मांगलिक दोष के प्रभाव व उससे सम्बन्धित उपाय के बारे में जानना चाहते है तो एस्ट्रोरुद्राक्ष के विद्वान ज्योतिषी आपको सटीक रूप से इस सन्दर्भ में परामर्श देंगे –