कलश स्थापना मुहूर्त एवं विधि ( Kalash sthapana muhurt evam vidhi )

kalash sthapana vidhi

कलश स्थापना विधि एवं मुहूर्त  (Kalash sthapana vidhi evam muhurt )

सनातन जीवन पद्धति में नवरात्र का शक्ति उपासना के क्षेत्र में सर्वाधिक महत्व है, माता की आराधना के लिये यह नौ दिन का समय अत्यंत ही शुभ एवं शक्तिमय माना जाता है, यह समय अपने आप को सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण करने का अद्भुत समय है, इस समय का लाभ हमें अवश्य ही लेना चाहिए, नवरात्र पर्व में कलश स्थापना से माँ की आराधना का शुभारम्भ होता है, इस पर्व पर कलश स्थापना की महत्ता बहुत अधिक है, कलश को सुख समृद्धि का कारक माना जाता है, कलश के मुख पर भगवान श्रीहरी, कंठ पर देवाधिदेव भगवान महादेव एवं मूल पर सृष्टी रचयिता भगवान ब्रह्मा का स्थान माना जाता है, कलश में सभी देवी-देवताओं का भी वास माना जाता है |

यदि आप इस कलश स्थापना को स्वयं करना चाहते है या इस विधि को किस प्रकार से करते है यह देखना चाहते हैं तो इस पोस्ट के नीचे एक वीडियो इसी कलश स्थापना के बारे में दिया गया है आप उसे देख सकते है, इसमें सभी मन्त्रों के साथ कलश स्थापना की पूर्ण शास्त्रीय विधि बताई गई है | 

कलश स्थापना मुहूर्त (Kalash Sthapana Muhurt) 

9 अप्रैल 2024 

सुबह 5:41 से 9:53 तक

(अवधि – 4 घण्टे 12 मिनट)

अभिजित मुहूर्त – सुबह 11:34 से दोपहर 12:25

कलश स्थापना विधि (Kalash Sthapana Vidhi)

कलश स्थापना विधि (kalash sthapana vidhi) में जहाँ पर कलश स्थापना करनी हो उस भूमि को गाय के गोबर से लीपकर पवित्र कर लें फिर उस स्थान पर अष्टदल आटे या रोली से बनाएं फिर दाहिने हाथ से भूमि का स्पर्श करते हुए निम्न श्लोक का उच्चारण करें-   

ऊँ भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्री पृथ्वीं यच्छ पृथ्वीं दृँगूंह पृथ्वीं मा हिँगूंसी: |

फिर उस स्थान पर थोड़ी मिट्टी में गंगाजल मिलकर रखें जिस पर कलश रखना हो, उक्त मिट्टी में निम्न श्लोक का उच्चारण कर जौ बो दें-

ऊँ धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणाय त्वो दानाय त्वा व्यानाय त्वा | दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धां देवो व: सविता हिरण्यपाणि: प्रति गृभ्णात्वच्छिद्रेण पणिना चक्षुषे त्वा महीनां पयोऽसि ||  

एक नया मिट्टी का कलश ले कर कलश पर रोली या कुमकुम से स्वस्तिक बनायें फिर कलश के ऊपरी भाग में कलावा (मौली) बाँध दें, फिर उक्त मिट्टी पर निम्न श्लोक का उच्चारण करते हुए उस पर कलश की स्थापना करें-

ऊँ आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्विन्दव: | पुनुरूर्जा नि वर्तस्व सा न: सहस्त्रं धुक्ष्वोरूधारा पयस्वती पुनर्मा विशताद्रयि: ||

इस कलश में निम्न श्लोक का उच्चारण करते हुए गंगाजल डालें-

ऊँ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्कम्भसर्जनी स्थो वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमा सीद ||

निम्न श्लोक का उच्चारण करते हुए कलश में चन्दन डालें-

ऊँ त्वां गन्धर्वा अखनँस्त्वामिन्द्रस्त्वां बृहस्पति:| त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान यक्ष्मादमुच्यत ||

निम्न श्लोक का उच्चारण करते हुए कलश में सर्वौषधि डालें-

ऊँ या ओषधी: पूर्वा जाता देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा | मनै नु बभ्रूणामहँगूंशतं धामानि सप्त च ||

(अग्नि पुराण के अनुसार मुरा, जटामांसी, वच, कुष्ठ, शिलाजीत, हल्दी, दारूहल्दी, सठी, चम्पक, मुस्ता को सर्वोषधि कहा जाता है)

निम्न श्लोक का उच्चारण करते हुए कलश में दूब डालें-

ऊँ काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती परुष: परुषस्परि | एवा नो दूर्वे प्र तनु सहस्त्रेण शतेन च ||

निम्न श्लोक का उच्चारण करते हुए कलश पर पञ्च पल्लव रखें-

ऊँ अश्वत्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता | गोभाज इत्किलासथ यत्सनवथ पूरुषम् ||

(बरगद, गूलर, पीपल, आम, पाकड़ को पञ्चपल्लव कहा जाता है)    

निम्न श्लोक का उच्चारण करते हुए कलश में कुश डालें-

ऊँ पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्व: प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभि: | तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्काम: पुने तच्छकेयम् ||

निम्न श्लोक का उच्चारण करते हुए कलश में सप्तमृतिका डालें-

ऊँ स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी | यच्छा न: शर्म सप्रथा: ||

(घुड़साल, हस्तिशाल, बाँबी, नदियों का संगम, तालाब, राजद्वार, गौशाला इन स्थानों की मिट्टी को सप्तमृतिका कहा जाता है)    

निम्न श्लोक का उच्चारण करते हुए कलश में एक सुपारी डालें-

ऊँ या: फ़लिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणी: | बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुंचन्त्वँहस: मुञ्चन्त्वगूंहस: || 

निम्न श्लोक का उच्चारण करते हुए कलश में पञ्चरत्न डालें-

ऊँ परि वाजपति: कविरग्निर्हव्यान्यक्रमीत् | दधद्रत्नानि दाशुषे ||

निम्न श्लोक का उच्चारण करते हुए कलश में एक सिक्का डालें-

ऊँ हिरण्यगर्भ: समवर्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेक आसीत् | स दाधार पृथ्वीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ||

निम्न श्लोक का उच्चारण करते हुए कलश को नवीन वस्त्र से सुसज्जित करें-

ऊँ सुजातो ज्योतिषा सह शर्म वरूथमाऽसदत्स्व: | वासो अग्ने विश्वरूपगूंसं व्ययस्व विभावसो ||

निम्न श्लोक का उच्चारण करते हुए कलश पर मिट्टी के कसोरे में अक्षत( बिना टूटा चावल )भरकर रखें-

ऊँ पूर्णा दर्वि परा पत सुपूर्णा पुनरा पत | वस्नेव विक्रीणावहा इषमूर्जँ गूं शतक्रतो ||

निम्न श्लोक का उच्चारण करते हुए कलश पर लाल कपड़े में नारियल लपेट कर एक चुनरी ओढ़ा दें-

ऊँ या: फ़लिनीर्या अफ़ला अपुष्पा याश्च पुष्पिणी: | बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्वगूंहस: || 

अब पुष्प और अक्षत लेकर निम्न श्लोक का उच्चारण करते हुए वरुण देवता का आवाहन करें और पुष्प-अक्षत कलश पर छोड़े –

ऊँ तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भि: | अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशँगूँस मा न आयु: प्र मोषी:|| अस्मिन् कलशे वरुणं सांड्ग सपरिवारं सायुधं सशक्तिकमावाहयामि | ऊँ भूभुर्व: स्व: भो वरुण ! इहागच्छ इह तिष्ठ, स्थापयामि,पूजयामि, मम पूजां गृहाण | ऊँ अपां पतये वरुणाय  नम:।

हाथ में पुष्प लेकर निम्न श्लोक का पाठ करते हुए दैव शक्तियों का आवाहन करें फिर पुष्प कलश पर चढ़ा दें-

कलशस्य मुखे विष्णु: कण्ठे रुद्र: समाश्रित: |

मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणा: स्मृता: ||

कुक्षौ तु सागरा: सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा |

ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेद: सामवेदो ह्यथर्वण: ||

अङ्गैश्च सहिता: सर्वे कलशं तु समाश्रिता: |

अत्र गायत्री सावित्री शान्ति: पुष्टिकरी तथा |

आयान्तु देवपूजार्थं दुरितक्षयकारका: ||

गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति |

नर्मदे सिन्धुकावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ||

सर्वे समुद्रा: सरितस्तीर्थानि जलदा नदा: |

आयान्तु मम शान्त्यर्थं दुरितक्षयकारका: ||

 

कलश प्रतिष्टा

हाथ में अक्षत पुष्प लेकर निम्न श्लोकों का उच्चारण कर कलश के सामने अक्षत पुष्प छोड़ते हुए कलश की प्रतिष्ठा करे- 

ऊँ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञं गूँ समिमं दधातु, विश्वे देवास इह मादयन्तामोउम्प्रतिष्ठ | कलशे वरुणाद्यावाहितदेवता: सुप्रतिष्ठता वरदा भवन्तु, ऊँ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: ||

इसके पश्चात निम्न प्रकार से कलश का पूजन करें-  

कलश पूजन –

ध्यान

हाथ में पुष्प लेकर वरुण देव के साथ सभी आवाहित देवी देवताओं का ध्यान करें

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः ध्यानार्थे पुष्पं समर्पयामि |

कलश के सामने पुष्प समर्पित करे |

आसन

निम्न श्लोक का पाठ कर अक्षत पुष्प कलश के समक्ष रखें

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि |

पाद्य

निम्न श्लोक का पाठ कर एक आचमनी जल कलश के समक्ष चढ़ायें, जल को किसी पात्र में ही चढायें   

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः पादयोः पाद्यं समर्पयामि |

अर्घ्य

निम्न श्लोक का पाठ कर एक आचमनी जल कलश के समक्ष चढ़ाये

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि |

स्नानीय जल

निम्न श्लोक का पाठ कर एक आचमनी जल कलश के समक्ष चढ़ाये

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः स्नानीयं जलं समर्पयामि |

चन्दन

कलश के सामने चन्दन अर्पित करें

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः चन्दनं समर्पयामि |

अक्षत

कलश पर अक्षत चढ़ायें

 ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः अक्षतान् समर्पयामि |

पुष्प

कलश पर पुष्प अर्पित करें

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः पुष्पं समर्पयामि |

सुगन्धित द्रव्य

कलश के सामने इत्र अर्पित करें

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः सुगन्धित द्रव्यं समर्पयामि |

 धूप

कलश को धूप दिखायें

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः धूपमाघ्रापयामि |

दीप

कलश को दीपक दिखायें

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः दीपं दर्शयामि |

हस्तप्रक्षालन

दीप दिखाकर हाथ धो ले।

नैवेद्य

कलश के समक्ष नैवेध –फल अर्पित करें

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः सर्वविधं नैवेद्यं निवेदयामि |

आचमन आदि

कलश के समक्ष पांच बार जल अर्पित करें

 ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, आचमनीयं जलम्, मध्ये पानीयं जलम्, उत्तरापोऽशने, मुख प्रक्षालनार्थे, हस्तप्रक्षालनार्थे च जलं समर्पयामि। (आचमनीय एवं पानीय तथा मुख और हस्त प्रक्षालनके लिये जल चढ़ाये।)

ताम्बूल

कलश के समक्ष पान,सुपारी, लौंग और इलायची अर्पित करें   

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः ताम्बूलं समर्पयामि |

पुष्पाञ्जलि

कलश के समक्ष पुष्प अर्पित करें

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि |

प्रार्थना

हाथ में पुष्प लेकर निम्न श्लोक का पाठ कर प्रार्थना करने के पश्चात पुष्प कलश के समक्ष अर्पित करें

देवदानवसंवादे मथ्यमाने महोदधौ | उत्पन्नोऽसि तदा कुम्भ विधृतो विष्णुना स्वयम् ||

त्वत्तोये सर्वतीर्थानि देवाः सर्वे त्वयि स्थिताः | त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि त्वयि प्राणाः प्रतिष्ठिताः ||

शिवः स्वयं त्वमेवासि विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः | आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवाः सपैतृकाः ||

त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि यतः कामफलप्रदाः | त्वत्प्रसादादिमां पूजां कर्तुमीहे कर्तुमीहे जलोद्भव |

सांनिध्यं कुरु मे देव प्रसन्नो भव सर्वदा ॥

नमो नमस्ते स्फटिकप्रभाय सुश्वेतहाराय सुमङ्गलाय | सुपाशहस्ताय झषासनाय जलाधिनाथाय नमो नमस्ते ||

 ‘ॐ अपां पतये वरुणाय नमः ।’

नमस्कार

कलश के समक्ष निम्न श्लोक का उच्चारण कर पुष्प अर्पित करें

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि।

समर्पण

अब जल पुष्प लेकर निम्न श्लोक का उच्चारण करते हुये कलश के पास अर्पित करें एवं अपना सभी पूजन कर्म उन्हें अर्पित करें

कृतेन अनेन पूजनेन कलशे वरुणाद्यावाहितदेवताः प्रीयन्तां न मम ।

kalash sthapana vidhi 

Kalash sthapana vidhi evam muhurt

 

कलश स्थापना विधि पूर्ण करने के पश्चात् (kalash sthapana vidhi) नवरात्र में ध्यान रखने योग्य तथ्य:

  • नवरात्र में कलश के समक्ष अखण्ड दीपक प्रज्जवलित करना चाहिए |
  • कलश स्थापना में यदि कोई सामग्री उपलब्ध न हो तो विकल्प के रूप में अक्षत का प्रयोग कर सकते है |
  • दशमी के दिन कलश के जल को परिवार के सभी सदस्यों के सर पर जयन्ती से छिड़कना चाहिए एवं शेष बचे हुए जल को पुरे घर में जयन्ती से छिड़काव करें ताकि घर पवित्र हो तथा सकारात्मक ऊर्जा का आगमन हो, कलश के नीचे स्थित मिट्टी में जो जौ का पौधा होता है उसे जयन्ती कहते है |
  • नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का स्वयं पाठ करें या किसी पण्डित से कराएं, स्वयं करना अतिउत्तम होगा |
  • नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का पाठ न कर पायें तो कुन्जिका स्तोत्र का पाठ करें |
  • माता को लाल पुष्प अवश्य अर्पित करें विशेषत: गुड़हल (अड़हुल) |
  • अष्टमी तिथि को माता अन्नपूर्णा की आराधना से पुरे वर्ष घर में पर्याप्त अन्न-धन रहता है |
  • नवरात्र में उपवास रखें |
  • नवरात्र में लाल वस्त्र धारण कर पूजा करनी चाहिए |
  • नवरात्र में कुमारी पूजन अवश्य करें |
  • सप्तशती के पाठ के पूर्व भगवान गणपति के अथर्वशीर्ष का पाठ करना चाहिए |

मांगलिक दोष के कारण और निवारण 

गणपति अथर्वशीर्ष से लाभ व पाठ विधि

नवरात्र पर किये जाने वाले सप्तशती के अमोघ प्रयोग

सरस्वती पूजा विधि 

यदि आप अपनी कुण्डली के अनुसार अपना भविष्य जानना चाहते है तो एस्ट्रोरुद्राक्ष के ज्योतिषी से अभी परामर्श लें