पांच मुखी रुद्राक्ष में प्राकृतिक रूप से इसकी सतह पर पांच धारियां पायी जाती है, इस रुद्राक्ष को कालाग्नि रुद्र का प्रतीक माना गया है| पांच मुखी रुद्राक्ष सर्वाधिक सुगमता से पाए जाने वाला रुद्राक्ष है, यह विभिन्न आकार में पाया जाता है इसके बड़े दाने बेर के बराबर पाया जाता है| नेपाल के दाने बहुत ही स्पष्ट रूप के होते है | सामान्यतः जो लोग रुद्राक्ष धारण करते है वो लोग पांच मुखी रुद्राक्ष को अवश्य धारण करते है |
इस रुद्राक्ष को धारण करने से अनेकों पापों से निवृति मिलती है,अभक्ष्य भक्षण ( न खाने योग्य चीजों को खाने से उत्पन्न दोष) एवं पर स्त्रीगमन जैसे पापों से भी निवृति मिलती है| पांच मुखी रुद्राक्ष रक्तचाप की बिमारी में बहुत लाभदायक होता है इसको धारण करने से रक्तचाप नियंत्रित रहता है | यह रुद्राक्ष यशकारी, स्वास्थ्यवर्धक, आयुवर्द्धक, दरिद्रतानाशक एवं सर्वविध कल्याणकारी होता है |
पांच मुखी रुद्राक्ष बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है| जब कुण्डली में बृहस्पति नीच का हो, शत्रुक्षेत्री हो, त्रिक भावों(6,8,12) में हो, गुरु चाण्डाल योग हो या व्यक्ति बृहस्पति ग्रह से किसी भी प्रकार पीड़ित हो तो उसे अवश्य ही पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए, यह बृहस्पति ग्रह की अशुभता को परिवर्तित कर शुभता प्रदान करता है|
पांच मुखी रुद्राक्ष धारण की सामान्य विधि :
किसी भी सोमवार, प्रदोष, पूर्णिमा अथवा बृहस्पतिवार को किसी शिव मंदिर में अथवा घर में स्थापित मंदिर के सामने पांच मुखी रुद्राक्ष को पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गौमूत्र व गोबर का मिश्रण) से पवित्र करें फिर रुद्राक्ष को गंगाजल से पवित्र करें, यदि पंचगव्य न मिले तो सिर्फ गंगा जल से पवित्र करें|
अपने सामने रुद्राक्ष को बजोट ( लकड़ी की छोटी चौकी ) पर किसी ताम्र अथवा रजत पात्र में स्थापित कर निम्नोक्त प्रत्येक मंत्रो का उच्चारण करते हुए श्वेत चन्दन या भभूत लगायें–
- ॐ वामदेवाय नमः ||
- ॐ ज्येष्ठाय नमः ||
- ॐ श्रेष्ठाय नमः ||
- ॐ रुद्राय नमः ||
- ॐ कालाय नमः ||
- ॐ कलविकरणाय नमः ||
- ॐ बलविकरणाय नमः ||
- ॐ बलाय नमः ||
- ॐ बलप्रमथनाय नमः ||
- ॐ सर्वभूतदमनाय नमः ||
- ॐ मनोन्मनाय नमः ||
इसके पश्चात निम्नोक्त में से किसी भी एक मंत्र का यथाशक्ति (कम से कम 108 बार ) जाप करें –
- ॐ नमः शिवाय ||
- ॐ ह्रीं नमः ||
- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् | उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ||
जाप के पश्चात रुद्राक्ष को निम्न मन्त्र को पढ़ कर धूप दिखाये –
- ॐ अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो घोर घोर तरेभ्यः | सर्वेभ्यः सर्व सर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्र रुपेभ्यः ||
फिर निम्न मंत्रो का उच्चारण करते हुए रुद्राक्ष धारण करें –
- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ||