
एक मुखी रुद्राक्ष (1 mukhi rudraksha) को आदिदेव भगवान शिव का प्रत्यक्ष वरदान कहा गया है ,एक मुखी रुद्राक्ष को सभी रुद्राक्ष का शिरोमणि कहा गया है , यह रुद्राक्ष दो अलग अलग आकृतियों में पाया जाता है पहला गोलदाना और दुसरा काजूदाना एक मुखी रुद्राक्ष का गोल दाना अत्यन्त ही दुर्लभ माना गया है सर्वत्र काजूदाना ही सुलभता से मिलता है |
इस रुद्राक्ष को धारण करने से ब्रह्म हत्या जैसे पापों से निवृति मिलती है , यह एक मुखी रुद्राक्ष (1 mukhi rudraksha) भौतिक और आध्यात्मिक दोनो उन्नति प्रदान करता है, इसको धारण करने से मानसिक रूप से संबल मिलता है और मानसिक शान्ति मिलती है, यह रुद्राक्ष नेतृत्वता के गुणों में भी वृद्धि करता है, जो लोग किसी भी प्रकार के व्यसन से मुक्त होना चाहते है उन्हें यह रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए |
एक मुखी रुद्राक्ष (1 mukhi rudraksha) सूर्य ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है, जब कुण्डली में सूर्य नीच का हो, शत्रुक्षेत्री हो, त्रिक भावों(6,8,12) में हो या व्यक्ति सूर्य ग्रह से किसी भी प्रकार पीड़ित हो तो उसे अवश्य ही एक मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए, यह सूर्य ग्रह की अशुभता को परिवर्तित कर शुभता प्रदान करता है|
एक मुखी रुद्राक्ष (1 Mukhi Rudraksha) धारण की सामान्य विधि :
किसी भी सोमवार, प्रदोष, पूर्णिमा अथवा रविवार को किसी शिव मंदिर में अथवा घर में स्थापित मंदिर के सामने एक मुखी रुद्राक्ष (1 mukhi rudraksha) को पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गौमूत्र व गोबर का मिश्रण) से पवित्र करें फिर रुद्राक्ष को गंगाजल से पवित्र करें, यदि पंचगव्य न मिले तो सिर्फ गंगा जल से पवित्र करें, अपने सामने रुद्राक्ष को बजोट ( लकड़ी की छोटी चौकी ) पर किसी ताम्र अथवा रजत पात्र में स्थापित कर निम्नोक्त प्रत्येक मंत्रो का उच्चारण करते हुए श्वेत चन्दन या भभूत लगायें–
- ॐ वामदेवाय नमः ||
- ॐ ज्येष्ठाय नमः ||
- ॐ श्रेष्ठाय नमः ||
- ॐ रुद्राय नमः ||
- ॐ कालाय नमः ||
- ॐ कलविकरणाय नमः ||
- ॐ बलविकरणाय नमः ||
- ॐ बलाय नमः ||
- ॐ बलप्रमथनाय नमः ||
- ॐ सर्वभूतदमनाय नमः ||
- ॐ मनोन्मनाय नमः ||
इसके पश्चात निम्नोक्त में से किसी भी एक मंत्र का यथाशक्ति (कम से कम 108 बार ) जाप करें –
- ॐ नमः शिवाय ||
- ॐ ह्रीं नमः ||
- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् | उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ||
जाप के पश्चात रुद्राक्ष को निम्न मन्त्र को पढ़ कर धूप दिखाये –
- ॐ अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो घोर घोर तरेभ्यः | सर्वेभ्यः सर्व सर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्र रुपेभ्यः ||
फिर निम्न मंत्रो का उच्चारण करते हुए रुद्राक्ष धारण करें –
- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ||
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