होलाष्टक का महत्व – Holashtak 2024

Holashtak

होलाष्टक ( Holashtak) शब्द की उत्पत्ति दो शब्दों के मेल से हुई है पहला “होली” और “दूसरा अष्टक अर्थात आठ”, होलीका दहन से लेकर आठ दिन पूर्व ( फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तक ) के समय को होलाष्टक (Holashtak) काल कहते है, इस वर्ष होलाष्टक की अवधि 17 मार्च 2024 से 24 मार्च 2024 तक रहेगी, इन दिनों के मध्य वातावरण में ऊर्जा की अधिकता रहती है जिस कारण किसी के द्वारा किये गए धार्मिक कृत्यों का शीघ्र ही प्रभाव मिलता है ।  

शास्त्रों में होलाष्टक (Holashtak) काल के मध्य किसी भी शुभ कार्य को करने से वर्जित किया है, इस समय कोई भी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, मुंडन, नामकरण, भूमि-भवन का क्रय, वाहन का क्रय या व्यापार का प्रारम्भ नहीं करना चाहिये ।  

 अतः इस काल का सदुपयोग अधिक से अधिक ध्यान, जाप व अनुष्ठान आदि कर अपने आप को ऊर्जावान बनाने में करना चाहिए क्योंकि इस होलाष्टक (Holashtak)काल में किये गये धार्मिक अनुष्ठानों का प्रतिफल अतिशीघ्र मिलता है , इस काल में भगवान विष्णु की उपासना विशेष फलदायी होती है और भगवान नृसिंह की उपासना का तो सर्वाधिक महत्व होता है इस काल में भगवान नृसिंह की आराधना करने से उनकी कृपा अतिशीघ्र मिलती है,

 इस होलाष्टक (Holashtak) काल में नवग्रहों की शांति से सम्बन्धित अनुष्ठानों को सम्पन्न करने से इसका विशेष प्रभाव मिलता है यदि आपकी कुण्डलीं में कोई भी ग्रह नीच का हो, त्रिक भावों अर्थात छठे, आठवें या बारहवें भावों में हो, निर्बल अवस्था में हो या नकारात्मक ग्रहों के प्रभाव में आकर दुष्प्रभाव दे रहा हो तो उस ग्रह की शांति इस काल में करने से इसका शुभ प्रभाव अति शीघ्र मिलने लगता है, नवग्रहों की शांति में हर एक ग्रह के लिये एक विशेष दिन निर्धारित किया गया है  ये दिन निम्न रूप से निर्धारित किये गये है- 

 

  • फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी को चंद्रमा की ऊर्जा अत्यधिक होती है इस दिन चन्द्रमा की शांति करनी चाहिए |
  • फाल्गुन शुक्ल नवमी को सूर्य की ऊर्जा अत्यधिक होती है इस दिन सूर्य की शांति करनी चाहिए |
  • फाल्गुन शुक्ल दशमी को शनि की ऊर्जा अत्यधिक होती है इस दिन शनि की शांति करनी चाहिए |
  • फाल्गुन शुक्ल एकादशी को शुक्र की ऊर्जा अत्यधिक होती है इस दिन शुक्र की शांति करनी चाहिए |
  • फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को गुरु की ऊर्जा अत्यधिक होती है इस दिन गुरु की शांति करनी चाहिए |
  • फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी को बुध की ऊर्जा अत्यधिक होती है इस दिन बुध की शांति करनी चाहिए |
  • फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी को मंगल की ऊर्जा अत्यधिक होती है इस दिन मंगल की शांति करनी चाहिए |
  • फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के दिन राहु-केतु की ऊर्जा अत्यधिक होती है इस दिन राहुकेतु की शांति करनी चाहिए |

यदि कोई ग्रह विशेष कष्ट दे रहा हो तो इस पुरे आठ दिनों में केवल उस ग्रह के मन्त्र का जाप, हवन, अनुष्ठान आदि कर सकते है इसका विशेष प्रभाव होगा |  

 

होलाष्टक (Holashtak) की शास्त्रीय मान्यता –  

होलाष्टक( Holashtak) की मुख्यतः दो शास्त्रीय मान्यता प्रचलित है

  • भक्त प्रहलाद भगवान श्री हरी विष्णु के अनन्य उपासक थे परन्तु उनके पिता हिरण्यकश्यप नास्तिक प्रकृति के थे उन्हें ध्यान, भजन, पूजा पाठ आदि धार्मिक कृत्य से घृणा थी उन्हें यह स्वीकार नहीं था की उनका पुत्र धर्मं के मार्ग पर चले, हिरण्यकश्यप ने अपने ही पुत्र को धर्म मार्ग से विचलित करने के लिए फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से पूर्णिमा के मध्य काल में अनेकों अत्याचार किये परन्तु बालक प्रहलाद के ऊपर इन सब का किन्चित भी प्रभाव नहीं पड़ा, अन्तोगत्वा हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को जिसे यह वरदान प्राप्त था की वह अग्नि से जल नही सकती है उसे बुलाया और कहा की वह प्रहलाद को लेकर अग्नि में प्रवेश करे ताकि प्रहलाद को वह इस माध्यम से मृत्यु दण्ड दे सके परन्तु हरिकृपा से भक्त प्रहलाद का बाल भी बाँका न हुआ और होलिका को मिला हुआ वरदान धर्म विरुद्ध कार्य करने के कारण निष्फल हुआ और होलिका उसी अग्नि में जलकर स्वाहा हो गई, इस कारण इन होलाष्टक (Holashtak) के आठ दिनों को विशेष माना गया है |
  • दूसरी शास्त्रीय मान्यता यह है की एक समय में भगवान भोलेनाथ तपस्यारत थे तब कामदेव ने उनकी तपस्या को भंग करने का प्रयास किया जिससे भगवान शिव क्रोधित होकर कामदेव को भस्म कर दिया उस दिन फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी थी उनके भस्म होते ही पुरे प्रकृति में ऊर्जा का विस्फोट हुआ और पुरे आठ दिन तक प्रकृति में ऊर्जा की अधिकता रही | इस कारण इन होलाष्टक (Holashtak) के आठ दिनों को विशेष माना गया है | 

होलाष्टक ( Holashtak) काल में निषिद्ध कर्म   

होलाष्टक( Holashtak) में ऊर्जा की अधिकता होने के कारण कोई भी व्यक्ति समुचित निर्णय लेने में सक्षम नही होता है अतः कोई भी शुभ कार्य इस काल में वर्जित है शास्त्रों में निम्नोक्त कार्यो को होलाष्टक में निषिद्ध माना है –

  • मुंडन न करना
  • नामकरण न करना
  • कर्णवेध न करना
  • सगाई न करना
  • विवाह न करना
  • गृहप्रवेश न करना
  • भूमि या भवन न क्रय करना
  • वाहन न क्रय करना
  • नया व्यापार प्रारंभ नहीं करना
  • नौकरी में परिवर्तन नहीं करना
  • किसी प्रकार के मांगलिक कार्य को न करना
  • कोई भी नया कार्य न करना

 

होलाष्टक (Holashtak) पर किये जाने वाले कार्य

फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी के दिन जहाँ पर होलिका दहन करना हो उस स्थान पर लकड़ी के दो डंडे स्थापित किए जाते हैं। जिनमें से प्रथम डंडे को होलिका का प्रतीक तो द्वितीय डंडे को प्रहलाद का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद इन डंडों को गंगाजल से शुद्ध करके इनका पूजन करते है इसके बाद इन डंडों के चारों तरफ गोबर के उपले और लकड़ियां लगा कर इसे होलिका का स्वरुप देते है इसके बाद इस होलिका के चारो और गुलाल और आटे से रंगबिरंगी रंगोली बनाते है फिर इस होलिका का फाल्गुन पूर्णिमा के दिन अग्नि दहन कर देते है, होलिका दहन के पश्चात होलाष्टक का समापन हो जाता है |